पालिका के पैसे पर जनता का कोई नियंत्रण नहीं___
विकास और गुणवत्तापूर्ण कार्य में बहुत अंतर है__
हरीश मिश्र- 9584815781
रायसेन- रायसेन नगर पालिका जनता की है, जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित की जाती है, पर जनता का उस पर कोई नियंत्रण नहीं। वर्तमान और पिछली नगर पालिकाओं के जनप्रतिनिधियों के कार्यकाल और उन से प्राप्त दस्तावेजों का सूक्ष्म अध्ययन किया। तो निष्कर्ष यही निकला की पैसा बहुत आया । विकास के लिए ,पर मनमर्जी से काम किए गए ।
सच यह है कि जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों द्वारा अपनी मनमर्जी से शासन से प्राप्त धनराशि का उपयोग किया । सरकारी फंड से प्राप्त धनराशि पर जनता का कोई नियंत्रण नहीं । यह पैसा कैसे इस्तेमाल किया जाना चाहिए ? कहां इस्तेमाल किया जाना चाहिए ? जनता की जरूरत क्या है ? जनता से कोई नहीं पूछता।
रायसेन को हलाली डैम परियोजना से इसलिए जोड़ा गया की पेयजल की समस्या का स्थाई समाधान हो और अगले 25 वर्षों तक इस योजना से रायसेन के प्यासे कंठों की प्यास बुझाई जा सके । करोड़ों रुपए की इस परियोजना के बाद भी पेयजल समस्या का समाधान नहीं हो पाया । योजना में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया। पिछले 15 दिन से हलाली डैम परियोजना से पानी की सप्लाई बंद पड़ी है। उसका जिम्मेदार कौन ?
हलाली डैम का पानी शहर में लाने के लिए जो सड़कें पूर्व से निर्मिती थीं। उन सड़कों की खुदाई कर पाइप लाइन बिछाई गई। लेकिन पाइप लाइन डालने के बाद उन सड़कों को पैबंद लगा कर ठेकेदार ने छोड़ दिया । जबकि ठेकेदार से अनुबंध था कि वह जिन सड़कों को खोदेगा,उनको उसी गुणवत्ता के साथ बना कर देगा । लेकिन ठेकेदार ने ऐसा नहीं किया। नगरपालिका के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने उस कंपनी से कोई भी राशि वसूल नहीं की।
जब हलाली डैम से करोड़ों रुपए खर्च कर पानी आ रहा है । तब भी नगर पालिका परिषद द्वारा ट्यूबवेल के लिए मोटारें खरीदी और सुधरवाने में लाखों रुपए व्याय किया गया । इसका मतलब यह हुआ कि हलाली डैम परियोजना एक सफेद हाथी है ? जिस पर हर महीने लाखों रुपए खर्च किया जा रहा है ।लेकिन कंठ प्यासी के प्यासे रह गए।
सागर रोड़ चौराहे से गोपालपुर तक सड़क का चौड़ीकरण का कार्य किया गया। जहां मर्जी आई सड़क का चौड़ीकरण किया । जहां मर्जी आई काम छोड़ दिया । सड़क चौड़ीकरण में ठेकेदार ने इंजीनियर के साथ मिलकर आर्थिक अनियमितताएं की। सड़क की गुणवत्ता की कहानी दिख रही है, किस तरीके से सरकार से प्राप्त धनराशि का दुरुपयोग किया गया। गोपालपुर से सागर रोड तक वहीं सड़क पीडब्ल्यूडी द्वारा बनाई गई है । पीडब्ल्यूडी द्वारा बनाई गई सड़क की गुणवत्ता अलग दिख रही ह। और नगर पालिका द्वारा बनाई गई सड़क 2 महीने में ही गायब हो गई। उस सड़क पर दुर्घटनाएं होंने की संभावना बढ़ गई। निश्चित रूप से यदि उसका मूल्यांकन किया जाए तो ठेकेदार और इंजीनियर जेल में होते ।
लेकिन क्या हुआ, किसी को नहीं पता। सड़क का कितना भुगतान किया गया ? ठेकेदार के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई ? इंजीनियर को सस्पेंड किया गया था। सस्पेंड इंजीनियर बहाल कैसे हुआ । जनता को जानने का अधिकार है।
जब नई परिषद बनी उसके बाद इंडियन चौराहे, महामाया चौक और भोपाल रोड़ चौराहे पर नगर पालिका द्वारा लाउडस्पीकर सेट लगाए गए थे। उनमें मधुर आवाज में देश भक्ति के गीत बजते थे । देशभक्ति गीत सुनकर अच्छा लगता था। पर परिषद ने क्यों बंद कर दिए, समझ से परे है। जब बंद करना था । तो लगाए क्यों गए । इस पर व्याय की गई राशि किस से वसूली गई ? क्या यह पैसे का दुरुपयोग नहीं है ।
महामाया चौक पर नगर पालिका परिषद ने बहुत सुंदर फुब्बारा लगवाया, पर यह फुब्बारा प्रारंभिक दिन से ही उस ऊंचाई तक पानी नहीं फेंक पाया । जिससे महामाया चौक का सुंदरीकरण निहारने जनता जाती । इस तरह इस धनराशि का दुरुपयोग हुआ। जो शहीद स्मारक बनाया गया बहुत सुंदर बनाया गया पर उसके सामने अतिक्रमण हो गया लेकिन परिषद द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। आज शहीदों के स्मारक पर अंडे बिक रहे हैं । परिषद ने सेंट्रल बैंक के सामने चौपाटी बनाई । उस पर लाखों रुपए खर्च किए । पर वहां पर आज अवैध अतिक्रमण हो जाने से जो सौंदर्यीकरण किया गया उसका उपयोग नहीं हो पा रहा। केंद्रीय विद्यालय, स्टेडियम, स्वास्थ्य विभाग, कृषि विभाग के आसपास किए गए वृक्षारोपण में लाखों रुपए बर्बाद कर दिए गए। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। जिन पर खुले मंच पर, खुले मन से चर्चा की जा सकती है ।
परिषद ने नरापुरा श्मशान घाट, पूरन तालाब श्मशान घाट, चोपड़ा मोहल्ला शमशान घाट, तालाब का सौंदर्यीकरण, केंद्रीय विद्यालय, स्टेडियम और स्वास्थ्य विभाग, कृषि विभाग के आसपास अच्छी सड़कों का निर्माण किया है । उनकी गुणवत्ता उत्तम है। जिसके लिए परिषद की तारीफ की जाना चाहिए ।
इस तरह इस पूरी व्यवस्था पर जनता का कोई नियंत्रण नहीं । जनता जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों से कुछ नहीं कह सकती। जो अपने हैं, जिन को वोट देकर चुना । उनसे प्रश्न नहीं पूछ सकती। सरकारी फंड के सदुपयोग के लिए अपनी राय नहीं दे सकती। तो क्या यही जनतंत्र है ? क्या इसी को हम जनतंत्र कहेंगे कि 5 साल में एक बार वोट डालो और उसके बाद अपनी जिंदगी इन जनप्रतिनिधियों और अफसरों के हाथों में गिरवी रख दो ?
यह जनतंत्र नहीं हो सकता। होंना तो यह चाहिए की सीधे-सीधे का में भागीदार बने और जनता जो निर्णय ले । उन निर्णयों का पालन जनप्रतिनिधि और अफसर करें। तब ही विकास हो सकता है ।