मौत पर जश्न मनाना पशुता की निशानी है, लेकिन ऐसी पशुता भी सभ्य समाज में जरूरी है
हरीश मिश्र
मौत की खबर कभी भी सुखद नहीं होती__किंतु कभी-कभी किसी व्यक्ति की मौत हम चाहते हैं और उसकी मौत पर हम जश्न भी मनाते हैं। मौत पर जश्न मनाना पशुता की निशानी है, लेकिन ऐसी पशुता भी सभ्य समाज में जरूरी है। इसे नकारात्मक सुख भी माना जा सकता है ।
देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह, बलवीर सिंह, केहर सिंह को, मुंबई बम कांड के अपराधी याकूब मेनन को, संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को, मुंबई हमले के पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब को जब फांसी दी गई, उससे जो सुख की अनुभूति प्राप्त हुई । वैसे ही सुख की अनुभूति आज प्रियंका रेड्डी के बलात्कारियों को पुलिस द्वारा हैदराबाद में एनकाउंटर में मारे जाने पर प्राप्त हुई।
निर्भया कांड हो या हैदराबाद कांड समाज सरकार से कठोरतम दंड की अपेक्षा रखता है सरकार को वैधानिक रूप से निर्णय लेने में बरसों लग जाते__किंतु पुलिस द्वारा नर पिशाचओं को जो मुक्ति दी गई उसके लिए बधाई के पात्र हैं।